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Saturday, August 1, 2015

जीवन प्रभु का प्रसाद, इसे अवसाद नहीं बनना: दिनेश मुनि

जीवन प्रभु का प्रसाद, इसे अवसाद नहीं बनना: दिनेश मुनि

सलाहकार दिनेश मुनि ने कहा कि जीवन प्रभु का प्रसाद है इसे भूल चूक कर अवसाद नही बनाएं। यहां पर न तो कोई सदाबहार अमीर रहता है और न सदाबहार गरीब। जवान एक दिन बूढ़ा हो जाता है और बीमार एक दिन स्वस्थ। इसलिए व्यक्ति को निराश, हताश और उदास होने की बजाय सदा खुद पर विश्वास रखना चाहिए। जीवन में सुख के 99वें द्वार भी क्यों न बंद हो जाए पर 99वें बंद द्वारों को देखकर रोने की बजाय ईश्वर पर भरोसा रखें, क्योंकि वह सुख का सौवां द्वार कहीं न कहीं खोल ही देता है। उन्होंने कहा कि गलती होने पर डरें नहीं, क्योंकि गलती उसी से होती है जो कुछ करता है और ठोकरें उसी को लगती हैं जो चलता है। पर जो न तो कुछ करता है और न चलता है वह अपने जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाता है। वे आज 1 अगस्त 2015 को षिर्डी जैन स्थानक मे चातुर्मासिक प्रवचन श्रंखला के दौरान उपस्थित श्रद्धालुजनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बडा वह नहीं जिसके यहां चार चार नौकर काम करते हैं, बडा वह होता है जो चार चार नौकरों का काम अकेला कर देता हो। हर काम नौकरों के भरोसे छोडना ठीक नहीं। व्यक्ति जितना श्रम करेगा, उतना ही स्वस्थ रहेगा। डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए श्रोतेन्द्रिय का वर्णन किया। डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि हजम करना और सहन करना जिस व्यक्ति के जीवन में आ गया समझो उसे कई दुखों से छुटकारा मिल गया।

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