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Sunday, July 26, 2015

आपकी वीतरागी-परिणति -

आपकी वीतरागी-परिणति -
1. इस संसार में अगर किसी व्यक्ति की परिणीता (पत्नि) उसका कहना न मानकर दूसरों के घर बिना अनुमति के जाती हो,
2. अनुचित तरीके से रहती हो,
3. पर-पुरुषों से सम्बन्ध रखती हो; 
4. साथ ही उसके समस्त प्रयत्नों के बावजूद भी अगर उसकी पत्नि उसके नियंत्रण में न रहे,
5. तो उस व्यक्ति को ऐसी पत्नी को तलाक दे देना चाहिये।
6. एक बार तलाक देने के बाद वह कहीं भी जाये, रहे, हमें उससे क्या?
7. इसी तरह हे प्रभो, आप अनादिकाल से देख रहे हो कि आपकी परिणति (बुद्धि, मन) पर–पदार्थों में जा रही हो,
8. उन्हें भोग रही हो और आप के समस्त सत्‌ प्रयत्न भी उसे समझाने में असमर्थ हो रहे हैं.
9. इस तरह अगर आप अपनी पंचेन्द्रिय एवं मन रूपी परिणति को बहुत प्रयत्न करने पर भी आत्म केन्द्रित नहीं कर पा रहे हो
10. तथा वह आप का कहा न मान कर अनन्त परद्रव्यों से सम्बन्ध रख रही हो, उन्हें भोग रही हो,
11. तब इस परिस्थिति में यह ही उचित होगा कि आप भी उसे तलाक दे दो।
12. फिर आप की यह पर-परिणति कही भी जाये, रहे, कुछ भी करे, आप को उससे क्या प्रयोजन,
13. क्योकि तब आप उसके भी ज्ञाता-द्रष्टा बन जाते हो।
14. अब आप बस अपनी निज-परिणति यानी कि निज-स्वभाव में ही लीन रहो।
15. माना कि पुराने सम्बन्धों की याद आपको कुछ समय तक व्याकुल करती रहेगी, परन्तु फिर धीरे-धीरे आदत पड़ जायेगी।
16. तब अगर कभी उसकी याद भी उसकी आई, तो भूले बिसरे सपने की तरह ही आएगी और तब व्याकुलता न होकर मात्र शांति ही होगी।
17. हे प्रभो, शीघ्र ही आप देखोगे कि यह पर-परिणति धुंए की तरह गायब हो जावेगी और फिर आपकी अपनी सदाकाल आपके साथ ही रहने वाली वीतरागी-परिणति का उदय होगा.
18. फिर यह वीतरागी-परिणति अनन्त काल तक आप की निस्वार्थ सेवा करती रहेगी।

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