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Wednesday, August 5, 2015

कार्य करो, सही करो और व्यवस्थित करो तो सफलता जरूर मिलेगी: दिनेश मुनि

कार्य करो, सही करो और व्यवस्थित करो तो सफलता जरूर मिलेगी: दिनेश मुनि
‘सुलेमान शेख ने लिया एक दिवसीय आयंबिल का पच्चक्खाण’
चातुर्मास के दौरान सलाहकार दिनेश मुनि ने धर्मसभा को किया संबोधित।
-शिर्डी’ 5 अगस्त 2015।
बुधवार को ‘शिर्डी’ जैन स्थानक में चल रहे प्रवचन के दौरान अदभूत दृष्य देखने को मिला कि एक मुस्लिम, एक हिन्दू व एक जैन बालक, तीनों ने एक साथ खडे होकर सलाहकार दिनेश मुनि से एक दिवसीय आयंबिल व्रत का पच्चक्खाण ग्रहण किया तो उपस्थित जन समुदाय हर्ष विभोर होकर ‘जैन धर्म की जय - जयकार’ करने लगी।
वर्तमानदौर में महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि पुरुषार्थ करने के बाद भी सफलता हासिल क्यों नहीं होती। हम सारा जीवन पुरुषार्थ करते हैं लेकिन लक्ष्य दूर ही रह जाता है, ऐसा क्यों ?, तो इसका जवाब सफलता के तीन सूत्रों में है- कार्य करो, सही करो और व्यवस्थित करो। यह विचार श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि ने बुधवार 5 अगस्त 2015 को जैन स्थानक ‘शिर्डी’ में चातुर्मास के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
सलाहकार दिनेश मुनि ने उदाहरण देते हुए बताया कि छात्र परीक्षा में कुछ नहीं लिखकर आएगा तो क्या पास हो सकता है और लिख भी खूब ले लेकिन सब गलत हो तो क्या नंबर मिलेंगे ?। बस यही है जीवन जीने का सूत्र। तुम बहुत कुछ करते हो और सही भी करते हो। लेकिन कार्य को व्यवस्थित नहीं कर पाते, इसलिए सफलता से दूर रह जाते हो।
धर्म आराधना का तरीका अव्यवस्थित तो आत्मकल्याण कैसे - सलाहकार दिनेश मुनि ने कहा तुम बड़ी लगन से कोई भी कार्य करते हो फिर भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते तो इस बात का चिंतन करो। निश्चित ही कार्य के प्रति कोई अव्यवस्था रही होगी। कोई बच्ची रोटी बनाने के लिए आटा गूंथती है, रोटी बनाती है लेकिन रोटी गोल बने तो सभी कहते हैं कि उसे रोटी बनानी नहीं आती। लेकिन प्रश्न यह है कि वो रोटी जो गोल नहीं बनी, क्या उसे खाने से भूख नहीं मिटेगी? क्योंकि रोटी व्यवस्थित नहीं बनी या कहें कि गोल नहीं बनी इसलिए उस बच्ची को सफलता नहीं मिली। ऐसे ही श्रावक - श्राविकाऐं प्रतिदिन स्थानक, उपाश्रय, मंदिर जाते हैे लेकिन धर्म आराधना या साधना करने का तरीका ही अव्यवस्थित हो तो आत्मकल्याण कैसे होगा ?

डॉ. व्दीपेन्द्र मुनि ने कहा कि मृत्यु महोत्सव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जन्म महोत्सव तो सभी मनाते है परन्तु सत्कर्मों के माध्यम से मृत्यु को भी महोत्सव मनाने वाले विरले ही होते है। डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने तर्क करने की प्रवृति के बारे में कहा कि जहां तर्क है वहां नर्क है व जहां समर्पण है वहां स्वर्ग है। समर्पण से जीने से सुख की प्राप्ति होती है।
समारोह में आज मुख्य रूप से शिर्डी निवासी 58 वर्षीय ‘सुलेमान शेख’ व 47 वर्षीय रमेश मुरलीधर बोटे व लोढा ने आयंबिल तप की आराधना करते हुए पच्चक्खाण ग्रहण किये। उल्लेखनीय है कि ‘सुलेमान शेख’ विगत कई वर्षों से पूर्णतया शुद्ध व सात्विक जीवन व्यतीत कर रहै है और पूर्णतया नियम जैन संतों के प्रवचन, इत्यादि जैन धार्मिक गतिविधियों में भी हिस्सा लेते है।
क्या होता है आयंबलि - आयंबलि तप में साधक - साधिकाऐं बिना तेल, मिर्च, आदि का दिन में एक बार भोजन ग्रहण करती है, गरम पानी को दिनभर ग्रहण करते है और रात्रिकालीन अन्न व पानी का उपयोग नही करते है। 

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