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Friday, July 31, 2015

गुरु पुर्णिमा



जो शिष्य को तराशता हैँ, वह गुरु हैँ ।
शिष्य कि तलाश एक दुर्लभ घटना हैँ ।
इससे भी बड़ी घटना हैँ शिष्य को तराशना ।
जैसे शिल्पी अघड़ पाषाण को तराश कर प्रतिमा का भव्य रूप देता है , वैसे ही गुरू शिष्य को तराश कर उसकी प्रतिभा को निखार देता है ।
प्रतिभा को तलाशना और प्रतिमा को तराशना ज़िँदगी के ये दो मकसद होने चाहिए ।
अगर ज़िँदगी मेँ प्रतिभा की तलाश नहीँ तो ज़िँदगी 'लाश' से ज्यादा कुछ नहीँ ।
दरअसल गुरू पारखी होता हैँ उसमेँ शिष्य को तलाशने और तराशने का हुनर होता हैँ
" आचार्य श्री के व्यक्तित्व मेँ दोनो ही खूबिया शुमार है " ॥
गुरु पुर्णिमा कि शुभकामनाएँ ।



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